डॉ मनमोहन परिदा, वैज्ञानिक 'जी'
डॉ मनमोहन परिदा, वैज्ञानिक 'जी'
निदेशक, रक्षा अनुसंधान एवं विकास स्थापना (डीआरडीई)

डॉ. मनमोहन परिदा, वैज्ञानिक 'जी' ने 01 अक्टूबर, 2021 से निदेशक डीआरडीई (DRDE), ग्वालियर का पदभार संभाला। इन्होंने अपने प्रसिद्धि में तीन स्वर्ण पदक प्राप्त करने के साथ ओडिशा पशु चिकित्सा कॉलेज से पशु चिकित्सा विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इन्होंने प्रतिष्ठित भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, मुक्तेश्वर से पशु चिकित्सा वायरोलॉजी साइंस में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की और आगे जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर से माइक्रोबायोलॉजी में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की। इन्हें जापानी सरकार की ओर से मोनबुशो फेलोशिप से भी सम्मानित किया गया और इन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेडिसिन, नागासाकी, जापान में पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च साइंटिस्ट की पढ़ाई की।

यह मेडिकल वायरोलॉजी के क्षेत्र में तीन दशकों के वैज्ञानिक और तकनीकी प्रबंधकीय अनुभव के साथ एक वायरोलॉजिस्ट हैं। इनके अनुसंधान के मुख्य क्षेत्रों में तेजी से पता लगाने वाली प्रौद्योगिकियों, एंटीवायरल ड्रग डेवलपमेंट, नई पीढ़ी के वैक्सीन कैंडिडेट्स, आणविक महामारी विज्ञान, जीनोटाइपिंग, फ़ाइलोजेनेटिक विकास और बायोमेडिकल महत्त्व के उभरते वायरस की ट्रैफिकिंग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान के साथ रणनीतिक जैव रक्षा (जैव नियंत्रण और जैवीकरण) अनुसंधान एवं विकास शामिल हैं। इन्होंने संक्रामक रोग निगरानी कार्यक्रम के तहत डेंगू, चिकनगुनिया, स्वाइन फ्लू, कोविड 19 के लिए नेशनल अपैक्स रेफरल लेबोरेटरी की स्थापना की है। यह डीआरडीओ बायोथ्रेट मिटिगेशन प्रोग्राम का नेतृत्व कर रहे हैं और भविष्य में बायोथ्रेट आपात स्थितियों को कम करने के लिए देश में राष्ट्रीय बायोडिफेंस रेफरल लेबोरेटरी के रूप में अधिकतम माइक्रोबियल कंटेनमेंट कॉम्प्लेक्स (बीएसएल 4) सुविधा की स्थापना पर काम कर रहे हैं।

इन्होंने बड़ी संख्या में वायरस जैसे डेंगू, जेई, चिकनगुनिया, वेस्ट नाइल, स्वाइन फ्लू, सार्स, कोविड -19 के लिए जीन प्रवर्धन प्रौद्योगिकियों (आरटी-पीसीआर और आरटी-एलएएमपी) (RT-PCR और RT-LAMP) पर आधारित उन्नत आणविक निदान की स्थापना की है। इन्हें भारत में एलएएमपी (LAMP) तकनीक की शुरुआत करने का गौरव प्राप्त है। इन्होंने सिंथेटिक जीन आधारित दृष्टिकोण के माध्यम से उच्च जोखिम वाले बायोथ्रेट वायरल एजेंटों जैसे इबोला, चेचक, सीसीएचएफ, केएफडी, निपाह वायरस के लिए आरटी-एलएएमपी परीक्षण भी विकसित किए हैं। स्वाइन फ्लू आरटी-लैंप तकनीक को मेसर्स आरएएस लाइफ साइंस को दे दिया गया है और डब्ल्यूएचओ द्वारा स्वीकृत सीडीसी आरटी-पीसीआर के लिए वैकल्पिक स्वदेशी तकनीक के रूप में डीसीजीआई मंजूरी के साथ आईसीएमआर द्वारा स्वीकृत किया गया है। इन्होंने बायोसूट और बायोमास्क के परीक्षण के लिए जांच और मूल्यांकन सुविधा (सिंथेटिक रक्त प्रवेश, गीले जीवाणु प्रवेश, वायरल प्रवेश) की भी स्थापना की है। इसके अलावा, इन्होंने साइट पर तेजी से पता लगाने के लिए फील्ड में लगाए जाने योग्य मोबाइल नियंत्रण प्रयोगशाला "परख" भी विकसित की है, जिसका उपयोग मैसूर मेडिकल कॉलेज में चल रही महामारी के दौरान कोविड-19 नमूनों के परीक्षण के लिए भी किया गया था।

यह नीति प्रस्ताव और दिशानिर्देश तैयार करने के लिए विभिन्न अंतर-मंत्रालयी कार्य बलों (आईसीएमआर, आईसीएआर, डीबीटी) तकनीकी और संयुक्त कार्य समूह (टीडब्ल्यूजी और जेडब्ल्यूजी) समितियों के सदस्य थे। इन्होंने सहकर्मी समीक्षा पत्रिकाओं (सभी सी.आई-7213, एच-इंडेक्स-43, आई10 इंडेक्स-96 के साथ) में 139 शोध पत्र प्रकाशित किए हैं और 8 पीएचडी छात्रों की देखरेख की है। इनके पास 3 अंतर्राष्ट्रीय पेटेंट और 10 राष्ट्रीय पेटेंट हैं जिन्हें इनके नाम पर दिया गया है। इन्होंने डीएसटी-एल्सेवियर बिबिलोमेट्रिक एनालिसिस (2009-14) में इम्यूनोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी के क्षेत्र में उच्च 10 शोधकर्ताओं में स्थान प्राप्त किया था। इन्होंने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए द्वारा तैयार किए गए 2021 डेटा बेस के अनुसार बायोमेडिकल रिसर्च (वायरोलॉजी) के क्षेत्र में दुनिया के उच्च 2% वैज्ञानिकों में भी स्थान प्राप्त किया है। इन सभी सच्चे प्रयासों को विभिन्न राष्ट्रीय पुरस्कारों जैसे डीआरडीओ (डीआरडीओ साइंटिस्ट ऑफ द ईयर अवार्ड, डीआरडीओ टेक्नोलॉजी ग्रुप अवार्ड), आईसीएमआर (बसंती देवी अमीरचंद पुरस्कार), डीबीटी (नेशनल बायोसाइंस अवार्ड), डीएसटी (प्रौद्योगिकी व्यावसायीकरण पुरस्कार) और अन्य शैक्षणिक/पेशेवर निकाय (एनएएसआई-रिलायंस प्लेटिनम जुबली अवार्ड, ओडिशा विज्ञान अकादमी द्वारा सामंत चंद्र शेखर पुरस्कार) आदि के द्वारा सम्मान दिया गया है। यह इंडियन वायरोलॉजिकल सोसाइटी के फेलो भी हैं।

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